पूरे 100 साल हुए आज । 100 साल । इतने दिन काफी होते है किसी दर्द को भुला देने के लिए । इतने दिन काफी होते है किसी भी घाव को भरने के लिए । लेकिन एक ऐसा दर्द,एक ऐसा घाव जो आज तक नही भर पाया । भारत माँ की छाती पर एक ऐसा चोट जिसे याद कर मन व्याकुल हो उठता है । लगता है एक उधम सिंह मैं भी बन जाऊं । पर काश....काश ऐसा हो पाता ।
आज ही का दिन था । मतलब 13 अप्रैल 1919 । पंजाब के जलियांवाला बाग में लगभग 20000 लोग थे शांतिपूर्वक सभा मे । वैशाखी के उस पावन दिन को जनरल डायर नाम का एक अंग्रेज अपने 150 सिपाहियों के साथ आता है और लोगों पर अन्धाधुंघ गोली चलाई जाती है । बच्चे, बुढ्ढे, महिलाएं, नववयुवक सभी पर । कुछ ही देर में उस बाग की धरती रक्तमय हो जाटी है। लाशें फड़फड़ाने लगते हैं । हज़ारों लोग मृत पड़े रहते हैं । कुछ घायल । घायलों को कोई नही पूछता । कुछ लोग जान बचाने के खातिर बगीचे के कुएं में कूद जाते है,और उनकी मृत्यु और भी निश्चित हो जाती है ।।मुख्य दरवाजा बंद होता है वहां का, लोग जाएं भी तो कहाँ ? दस फ़ीट उची दीवारें थे बगीचे की । कहाँ संभव था पार पा जाना । 150 सैनिकों की तो बोटियां बोटियां कर देते हमारे लोग। लेकिन वे लड़ाई करने थोड़ी न आए थे । उनके पास एक भी हथियार नही था । वे तो बस शांतिपूर्वक सभा करने आए थे । बहुत सारे लोग तो आज बैसाखी के दिन घूमने आए थे स्वर्ण मन्दिर । अब जालियां वाला बाघ बगल में था तो आ गए । कोन जानता था, कुछ ऐसा हो जाएगा । किसे पता था कि आज का दिन उनके लिए आखिरी होगा ।
घटनाक्रम :-
6फरवरी 1919 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव असेंबली में रोलेट नाम का एक बिल पेश होता है । मार्च में इसे पास कर दिया जाता है और अब यह रोलेट एक्ट बन जाता है ।
रोलेट एक्ट के हिसाब से किसी भी संदेह पूर्ण व्यक्ति को देशद्रोह के जुर्म में जेल में डायरेक्ट डाला जा सकता है। इसके साथ ही साथ दो साल तक हिरासत में भी रखा जा सकता है। और उस व्यक्ति के पास न अपील के अधिकार है ना दलील के। इस कानून को भारत मे क्रांतिकारियों पर नकेल कसने के लिए लाया गया था । इसके विरोध में गांधी जी का सत्याग्रह आंदोलन चल रहा था । धीरे धीरे लोगों का गुस्सा ब्रिटिश गवर्मेंट पर बढ़ रहा था ।इसी क्रम में 6 अप्रैल को हड़ताल किया जाता है ।
9 अप्रैल को पंजाब के दो दिगज क्रांतिकारी नेता डॉ सैफुद्दीन और डॉ सतपाल कोअमृतसर में कैद कर लिया जाता है। फिर उनहे अमृतसर से धर्मशाला भेज दिया जाता है नज़रबंद करके ।।
लोग गुस्सा जाते है ।10 अप्रैल को डिप्टी कमिटी के पास लोग मिलने जाते है लेकिन उन्हें मिलने नही दिया जाता है । लोगों का गुस्सा और बढ़ जाता है । वे रेलवे में और तार विभाग में आग लगा देते है । इसी दौरान 3 अंग्रेजो की मौत हो जाते है ।तार विभाग में आग लगाये जाने से ब्रिटिश सरकार को बहुत समस्या हो जाते है क्योंकि अधिकतर अधिकारियों से बातचीत का साधन तार ही था ।
बिगड़ते हालात में,अब आगे की जिमेदारी जनरल एच डायर को दी जाती है। 11 अप्रैल को जनरल डायर अपना काम शुरू कर देता है। 12 अप्रैल को मार्शल लॉ लगा दिया जाता है। इसके अनुसार नागरिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक सम्मेलनों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। तीन से अधिक लोग अगर साथ मे दिखे तो जेल ।सभा पर भी रोक होता है इसके अनुसार ।
12 अप्रैल को अमृतसर के दो और क्रांतिकारी नेता को कैद कर लिया जाता है। चौधरी बुगामल और रतन माल ।
13 अप्रैल को कर्फ्यू लगा दिया जाता है। बैसाखी भी होता है उस दिन । 20000 लोग लगभग होते है जालिया वाला बैग में। कुछ शांतिपूर्वक सभा करने के लिए कुछ घूमने के लिए।
जनरल डायर को 12:40 में सूचना मिलती है । वह 150 सैनिकों के साथ वह पहुचता है । मुख्य मार्ग को बंद करके,बिना सुचना के 10 मिनट तक अंधाधुंध गोलियां चलाई जाती है ।
कांग्रेस के हिसाब से लगभग 10000 लोगों की मौत हुई उस दिन । 1500 घायल हुए ।100 से ज्यादा लाशें तो कुएं से निकली गई ।
लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने दुनिया मे अपनी कीरकीरी होने से बचने के लिएलगभग 320 मौत बताया । आज तक ब्रिटिश गवर्मेंट ने माफी नही मांगी है उस दुखदायी,हृदयविदारक घटना के लिए ।
फिर इसके बाद शुरू होता है जांच का सिलसिला । ये पता करने के लिए की डायर ने जो किया वो सही था कि नही । इसके लिए बनाई जाते है विलियम हंटर के नेतृत्व में हंटर कमिटी । इसमे सात और सदस्य होते है ।। 19 नवंबर 1919 को जनरल डायर को पेश किया जाता है इस कमिटी के सामने और सवाल जवाब किया जाता है। 8 मार्च 1920 को दायर को गलत करार दिया जाता है और उसकी सेवानिवृति कर दी जाते है ।
लेकिन इतना काफी नही था ।कोई था जिसे कुछ और चाहिए था । 13 मार्च 1940 को यानी 21 साल के बाद उधम सिंह ने कैकस्तान हॉल में जनरल डायर को गोली मार दी, और गर्व के साथ फिर सजा को स्वीकार किया ।।
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