Thursday, 19 November 2020

जीतूंगा मै अब by Ravi Ranjan Yadav


 जिन्दगी उलझनों से भरी थी। दोस्तों और अपनों ने भी किनारा कर लिया था। भाग्य रेखाओं में अनावश्यक विकृति आ गयी थी। मैं दूसरों की सफलता की कहानियां कुढ़न के साथ सुनता था। मुझे लगता था मैं अब फीता छूने तक नहीं दौड़ सकता। कदम थक गए थे।

एक प्रातःकाल 'सूर्यनमस्कार' करते समय सूरज ने टोका कि आज तुम लेट हो। करोड़ों वर्षों से समय को अपने इर्द-गिर्द घुमाने वाले उस सूरज के तेज को देखकर विश्वास दृढ़ हो गया कि जीवन एक ही बार मिला है और यह बहुमूल्य है। निस्तेज जीवन का कोई मूल्य नहीं। नियंत्रण की डोरियां थामकर मैंने जीवन जीना शुरू किया। 

सबसे पहले कई लोगों के प्रति पाली गयी नफरतों को दिल से साफ किया। फिर खुद पर यकीन किया कि मैं वे सारे काम कर सकता हूँ जो मैं सोचता हूँ। फिर मैंने वक्त को सम्मान देना शुरू किया। जब भी वह (वक्त) मुझे मिलता, मैं व्यस्तता में उसके साथ घुलमिल कर दूध-पानी की तरह एक हो जाते थे। वक्त मेरे इस अपनेपन से इतना प्रसन्न हुआ कि मुझसे और अधिक मिलने लगा।

मुझे हर शाम सोते समय यह संतुष्टि होने लगी कि मैं कुछ पा रहा हूँ। नहाते समय होठों पर अब गीत सजने लगे। मुश्किलें अब भी आती थी लेकिन अब उनका नामकरण मैं करता था। जो 'ठरकी' हुआ करती थी उनको 'टल्ली' सुनना पसन्द नहीं आया। लाचार मुश्किलें गुमनामियों के अंधेरों में गुम हो गयी।

मैंने साहस बटोर कर बड़ा सोचना शुरू किया। बड़े लोगों से मिलने लगा। उनसे सीखने लगा। खुद से सीखने लगा। अवसरों में अवसर तलाशने लगा। मैंने जीवन शैली बदल कर जीने की अपनी एक शैली बनायी। झुनझुने की ललचाने वाली आवाज अब सुनाई नहीं देती थी उसका सतरंगी रंग दिखाई नहीं देता था।

आंखों और कानों में अभी भी सब कुछ अच्छा नहीं पड़ता था पर अब मस्तिष्क ने उन सबकी विवेचना का तरीका बदल दिया। मैंने भी सोचा सीखता कब तक रहूँगा अब खुद उदाहरण बन कर दुनियां को कुछ सिखाऊंगा। कष्ट को आनन्द में बदलने वाले इस सफर में चंद किताबें, चंद आदतें, चंद अपने, कुछ टोकने वाले खास मित्र और बदले हुए 'मैं' सटीक योजना के साथ सटीक समर्पण भाव से निरन्तरता के साथ काम करूंगा !! देखता हूं मै कैसे नहीं जीतता हूं । जीतूंगा मै अब । किसी में हो कुब्बत तो रोक ले ।।

2 comments:

  1. Wooow sir✌️🥰...fab 🤟...great 🎉✌️....this is ur bestest blog I have ever seen...🤟👍👌

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